सबसे बड़ी खबर यह है कि केंद्र सरकार ने लगभग चार वर्षों के बाद देश में नागरिकता संशोधन कानून को लागू कर दिया है और अब इस
कानून की अधिसूचना आज शाम को जारी हो गई है केंद्र सरकार का कहना है कि कोविड की
वजह से इस कानून की अधिसूचना को जारी करने में देरी हुई लेकिन अब सरकार ने आज से इस
कानून को लागू कर दिया है और यह वही कानून है जिसे आप में से बहुत सारे लोग सीएए के
नाम से भी जानते हैं इसे लेकर पहले बड़ा विवाद हुआ था सीएए का मतलब होता है
सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट इस कानून का नाम
है यह कानून दिसंबर को लोकसभा से और फिर दिसंबर को राज्यसभा में
पास हुआ था और बाद में इस कानून को को इस कानून पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी अपने
हस्ताक्षर कर दिए थे लेकिन सरकार ने उस समय इस कानून की अधिसूचना जारी नहीं की थी और यह कानून बनने के बाद भी इस कानून को
लागू सरकार नहीं कर पाई थी क्योंकि इस कानून को लेकर पहले बहुत प्रोटेस्ट हुए और
फिर बाद में कोविड की वजह से भी यह कानून लागू नहीं हो
पाया बड़ी बात यह है कि उस समय इस कानून के खिलाफ हमारे देश में बड़े पैमाने पर
आंदोलन हुआ था प्रोटेस्ट हुए थे और आपको याद होगा दिल्ली के शाहीन बाग के प्रोटेस्ट में भी उस समय दिनों तक
आंदोलन चला था और शायद इन विरोध प्रदर्शनों की वजह से सरकार ने सीएए को लागू करने के लिए इसकी अधिसूचना जारी नहीं
की थी लेकिन अब चुनावों से ठीक पहले यह अधिसूचना जारी हो गई है और यह कानून भी अब
देश में लागू हो गया है हालांकि ये भारत का शायद पहला ऐसा कानून है जिसके बारे में
काफी भ्रांतियां फैली हुई हैं और इन भ्रांतियों को हमारे देश का ही एक वर्ग सच
मानकर इन भ्रांतियों को फैला रहा है और वह यह सोचता है कि यह कानून एक विशेष धर्म के
लोगों की नागरिकता को समाप्त करने के लिए बनाया गया है जबकि यह बात पूरी तरह से गलत
है है पहले तो आप यह तस्वीरें देख लीजिए जो हैरानी की बात है वो यह कि जब से यह कानून
लागू हुआ है यानी आज शाम से पूरे देश में सुरक्षा के कड़े इंतजाम सरकार को करने पड़
रहे हैं और सरकार को ऐसी आशंका है कि इस
कानून के लागू होने के बाद देश में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश की जा सकती
है और इसीलिए बड़ी संख्या में देश भर में सुरक्षा बलों को तैनात किया जा रहा है
सुरक्षा के खास इंतजाम किए जा रहे हैं यह भी देखिए एक बड़ी बात है कि कानून लागू
होने के बाद देश में ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि इस तरह के सुरक्षा के की व्यवस्था
सरकार को करनी पड़े तो अब हम आपको यह बताते हैं कि यह जो पूरी एक थ्योरी चलाई जा रही है कि यह जो
कानून है यह खास तौर पर मुसलमानों के खिलाफ है इसके पीछे क्या सच्चाई है सीएए
का कानून नागरिकता को समाप्त करने के लिए नहीं बल्कि भारत की नागरिकता की प्राप्ति
के लिए बनाया गया है तो पहला इसका सिद्धांत समझ लीजिए यह किसी की भी नागरिकता समाप्त नहीं करेगा बल्कि यह नए
लोगों को नागरिकता देने के लिए है किसी की नागरिकता लेने के लिए बिल्कुल नहीं है और
यह कानून आज का नहीं है बल्कि यह कानून पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के समय का है जो पहली बार वर्ष में लागू हुआ था
और उसके बाद इस कानून में कई बार संशोधन हुए और अब तक यह कानून कुल छह बार इसका
संशोधन हो चुका है और मोदी सरकार के संशोधित कानून को सिटीजनशिप अमेंडमेंट
एक्ट कहते हैं तो यह आज का कानून नहीं है में यह पहली बार लागू हुआ था
उसके बाद छह संशोधन इसमें हुए और फिर यह जो नया रूप इसका है यह में आया सबसे
बड़ी बात यह है कि इस कानून का भारत के लोगों की नागरिकता से असल में कोई लेना
देना है ही नहीं भारत में रह रहे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बौद्ध और पारसी धर्म
के लोगों पर इस का कानून की नागरिकता का कोई भी असर नहीं पड़ने वाला यानी जो लोग
पहले से ही भारत में रह रहे हैं जिनके पास पहले से ही भारत की नागरिकता है चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाले हो उनका इस
कानून पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह कानून भारत के लोगों की नागरिकता के बारे में है ही नहीं यह कानून भारत के उन तीन
पड़ोसी देशों के बारे में है जहां के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मोदी सरकार
इस नए कानून के तहत भारत की नागरिकता देना चा ती है और अब आप यह नोट कर लीजिए बात कि
यह देश कौन-कौन से हैं यह तीन हमारे पड़ोसी देश हैं और यह है पाकिस्तान अफगानिस्तान और
बांग्लादेश आज हम आपको ठीक से समझा रहे हैं और हम यह चाहेंगे कि हमारे देश के लोग हमारे दर्शक कम से कम उन्हें इस कानून के
बारे में सारी बातें पता होनी चाहिए और आप चाहे तो दूसरों को भी इसके बारे में समझा
सकते हैं तो पहले तो सबसे पहले आपकी जानकारी बहुत जरूरी है और आपकी जो जानकारी
है अगर आप खुद अपनी जानकारी को बढ़ाएंगे तो फिर यह जानकारी देश में भी फैले गी तो
इन तीनों ही देशों में हिंदू सिख जैन बौद्ध पारसी और ईसाई धर्म के लोग
अल्पसंख्यक हैं वह अल्पसंख्यक माने जाते हैं क्योंकि उनकी संख्या वहां बहुत कम है
और यह नया कानून यह कहता है कि इन अल्पसंख्यक समुदायों के जो लोग दिसंबर
या उससे पहले भारत आ चुके हैं उन्हें
मोदी सरकार भारत की नागरिकता दे देगी तो यह तो अब आप समझ गए होंगे कि ये जो तीन
देश हैं यह असल में तीनों ही इस्लामिक देश है और इन तीनों देशों में ये जो साथ में
आप देख रहे हैं हिंदू सिख जैन बौद्ध पारसी और ईसाई ये लोग अल्पसंख्यक हैं और आपने देखा होगा कि इन तीनों ही देशों से यह
खबरें आती रहती हैं कि इन अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर वहां पर अत्याचार होता है इन्हें इनके जो अधिकार हैं वो नहीं दिए
जाते और बहुत सारे लोग परेशान होकर किसी ना किसी तर तरीके से वापस भारत भाग आते
हैं अब देखिए इसके पीछे कुछ आंकड़े भी समझिए वर्ष से के बीच कुल
लाख लोग पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आ चुके हैं और इन
लोगों में कितने मुस्लिम हैं और कितने गैर मुस्लिम और हिंदू हैं इसका अभी कोई आंकड़ा
उपलब्ध नहीं है लेकिन सारे अनुमान यह कहते हैं कि इस कानून से इन तीनों देशों के लाख
को गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी गैर मुस्लिम
शरणार्थियों को जिसके लिए इन लोगों को सरकार द्वारा बताई गई एक वेबसाइट पर पहले
अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा और फिर यह प्रोसेस शुरू हो जाएगा और यह जो इसमें अगर आप देखेंगे इन
तीनों देशों से धर्म के नाम पर अत्याचार का शिकार होने
पर जो लोग आते हैं उनमें शायद ही कोई मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति होगा ऐसे लोगों
की संख्या या तो ना के बराबर है या फिर बहुत ही मामूली होगी जिन्हें उनके धर्म की
वजह से पाकिस्तान में अफगानिस्तान में या बांग्लादेश में जिन पर अत्याचार होता हो
जिन्हें उनके अधिकार उनसे छीन लिए गए हो धर्म के कारण किसी भी इन तीनों ही देश में
मुसलमान व्यक्ति पर इस तरह के अत्याचार नहीं होते बल्कि हिंदुओं पर होते हैं
सिखों पर होते हैं जैन धर्म बौद्ध पारसी और ईसाइयों पर होते हैं अभी इस वेबसाइट के
बारे में केंद्र सरकार ने कोई नई जानकारी अभी नहीं दी है लेकिन जैसे ही हमें इस वेबसाइट के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी
हम आपको भी इसके बारे में जरूर बताएंगे ताकि जो लोग इन तीनों देशों से भागकर
तक हमारे देश में आ चुके हैं व अपनी नागरिकता के लिए इस वेबसाइट पर अप्लाई कर
सकते हैं और यह एक बड़ा कारण है जो मैं आपको बता रहा हूं दोबारा आपको पुरानी स्लाइड पर ले जाता हूं कि इसमें मुसलमानों
को शामिल क्यों नहीं किया गया है मुस्लिम नागरिकों को शामिल क्यों नहीं किया गया है क्योंकि इन तीनों ही देशों में ये मुस्लिम
बाहुल्य वाले वाले लोग जो हैं वह अल्पसंख्यक नहीं है बल्कि वह मेजॉरिटी में
है और उन पर धर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव का शिकार वह नहीं होते हैं
इसलिए इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है इस कानून को लेकर एक बात यह भी कही जाती है कि इसमें मुसलमानों को नागरिकता
देने का प्रावधान क्यों नहीं है और भारत सरकार सिर्फ हिंदू और बाकी गैर मुसलमानों
को ही भारत की नागरिकता क्यों दे रही है तो ऐसे लोगों को हम यह बताना चाहते हैं कि
पाकिस्तान अफगानिस्तान तान और बांग्लादेश यह तीनों ही मुस्लिम बाहुल्य जैसा कि
मैंने अभी आपको बताया और पाकिस्तान में पर अफगानिस्तान में
. पर और बांग्लादेश में पर मुसलमान रहते हैं और इसलिए इन देशों के मुसलमानों
को भारत की नागरिकता की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है और कोई भी देश किसी दूसरे की
बहुसंख्यक आबादी को नागरिकता देने के लिए कभी कानून नहीं बनाता क्योंकि नागरिकता की जरूरत बहुसंख्यक आबाद आबादी को होती ही
नहीं है इसलिए आप खुद ही सोचिए पाकिस्तान में रहने वाला कोई मुसलमान भारत की
नागरिकता क्यों चाहेगा अफगानिस्तान में रहने वाला कोई मुसलमान भारत की नागरिकता क्यों लेना चाहेगा और बांग्लादेश में रहने
वाला वहां का कोई मुसलमान नागरिक भारत की नागरिकता क्यों लेना चाहेगा और भारत भी
उसे अपने यहां की नागरिकता क्यों देगा यह पूरा जो कानून है यह उन लोगों के लिए बनाया गया है जो अपने धर्म की वजह से
अत्याचार का शिकार हो रहे हैं जिनके साथ उनके धर्म की वजह से भेदभाव वहां पर हो
रहा है और व अल्पसंख्यक होने की वजह से वहां इस अत्याचार के शिकार हो रहे हैं
नागरिकता की जरूरत अल्पसंख्यक आबादी को होती है और इन देशों में अभी अल्पसंख्यक
आबादी कौन है वो है हिंदू सिख जैन बौद्ध पारसी और ईसाई धर्म के लोग वहां पर
अल्पसंख्यक हैं इसलिए उनकी जान खतरे में है और यह उन लोगों की जान बचाने के लिए यह
कानून लाया गया है अब सोचिए पाकिस्तान में इस समय सिर्फ
. पर हिंदू बचे हैं बांग्लादेश में सिर्फ % हिंदू बचे हैं और अफगानिस्तान
में तो सिर्फ . पर हिंदू ही बचे हैं और मोदी सरकार
के इस नए कानून से इन हिंदुओं को भी अभी जो नागरिकता पहले नहीं मिल रही थी और अब
इन्हें नागरिकता मिल पाएगी यह नागरिकता उन्हीं हिंदुओं और गैर मुसलमानों को सरकार
की तरफ से मिलेगी जो दिसंबर या उससे पहले भारत आ गए थे तो एक और बड़ी बात
यह है कि अगर आज इन तीनों देशों से कोई भी हिंदू या कोई भी अल्पसंख्यक गैर मुसलमान
व्यक्ति अगर आज आ भी जाए उसे भी नागरिकता नहीं मिलेगी नागरिकता उनको मिलेगी जो
तक आ चुके हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इस कानून का भारत में रह रहे लोगों की नागरिकता से दूर-दूर तक कोई लेना देना
नहीं है भारत में जिसके पास जो नागरिकता है वह बनी रहेगी लेकिन इसके बावजूद बार-बार इस कानून के बारे में एक झूठ
फैलाया जाता है और इसे मुस्लिम विरोधी कानून बताने की कोशिश की जाती है अब भी
हमारे देश में कुछ लोग और अंतरराष्ट्रीय मीडिया इस कानून के बारे में एक फेक न्यूज
फैला रहा है और सीएए को एंटी मुस्लिम कानून बताया जा रहा है और आज मैं आपको एक
बड़ी इंटरेस्टिंग चीज दिखाता हूं देखिए कतर के सबसे बड़े मीडिया नेटवर्क
जिसका नाम है अलजजीरा अलजजीरा ने इसका न के ऊपर आज जब यह भारत में लागू हुआ है इस
पर एक खबर की है अलजजीरा ने और अलजजीरा ने क्या लिखा है मैं बड़ी स्क्रीन पर आपको
दिखाता हूं देखिए अलजजीरा का की जो हेडलाइन है अलजजीरा लिखता है
ब्रेकिंग न्यूज इंडिया इंप्लीमेंट एंटी मुस्लिम सिटीजनशिप लॉ वीक्स बिफोर
इलेक्शन यानी अलजजीरा ने यह मान लिया कि यह मुस्लिम विरोधी कानून है और उसने अपनी
हेडलाइन में इस कानून को मुस्लिम विरोधी कानून बताया है और अलजजीरा कहां का चैनल
है यह है कतर का एक चैनल और मेरे हाथ में इस य जो आर्टिकल जो उन्होंने पोस्ट किया
है उस आर्टिकल की मेरे पास कॉपी है जो मैं आज मैं लेकर आया हूं यह वह कॉपी है देखिए आपको मैं दिखाने की कोशिश कर रहा हूं
तस्वीर आप देखिए कौन सी तस्वीर उन्होंने इस्तेमाल की है और यह आर्टिकल लिखता है
इंडिया इंप्लीमेंट एंटी मुस्लिम सिटीजनशिप लॉ बिफोर
इलेक्शन और उसके बाद इस कानून के बारे में उन्होंने लिखा है कि यह बहुत ही विवादित
कानून है और द लॉ वाज डिक्लेयर्ड एंटी मुस्लिम बाय सेवरल राइट ग्रुप्स फॉर
कीपिंग द कम्युनिटी आउट ऑफ इट्स एमबिट रेजिंग क्वेश्चंस ओवर द सेकुलर कैरेक्टर ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी यानी
यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चरित्र पर एक सवाल उठाता है हमारे देश के
विपक्षी नेताओं ने भी इस कानून को वही नाम दिया है जो अलजजीरा कहकर जिस जो इसको
पुकार रहा है लिख रहा है अलजजीरा की भाषा और हमारे देश के विरोधी दलों की भाषा एक
ही है और वह भी इस कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर इसका विरोध कर रहे हैं और यह
विरोध शुरू हो चुका है जबकि इस कानून का भारत के मुसलमानों से कोई संबंध है ही
नहीं इसलिए हम भारत में रहने वाले जो हमारे जो मुस्लिम दर्शक हैं मुस्लिम हमारे भाई बहन हैं उन्हें हम ये बताना चाहते हैं
कि इसका भारत में रहने वाले किसी भी नागरिक से चाहे वह किसी भी धर्म का हो
हिंदू हो मुसलमान हो सिख हो ईसाई हो बौद्ध हो पारसी हो उससे कोई लेना देना इसका नहीं
है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देंगी तो
एक मुख्यमंत्री ने पहले ही चुनौती इस कानून को दे दी है अब देखिए दूसरे
मुख्यमंत्री केरल की लेफ्ट सरकार के मुख्यमंत्री पिनर आई विजय ने भी इस कानून
को सांप्रदायिक बताया है और कहा है कि सरकार इस कानून की मदद से संविधान के मूल
सिद्धांतों को कमजोर करना चाहती है और उन्होंने देश के लोगों से इस कानून का विरोध करने के लिए कहा है उनका भी ट्वीट
है और बहुत लंबा चौड़ा उन्होंने ट्वीट किया है जो कि आपकी स्क्रीन पर है और वह यह बताते हैं कि दिस कैन ओनली बी सीन एज
पार्ट ऑफ द हिंदुत्व कम्युनल एजेंडा ऑफ दी संघ परिवार यानी यह तो संघ परिवार का
सांप्रदायिक एजेंडा है डिनाइज निशि टू मुस्लिम्स वाइल ग्रांटिंग सिप्स टू नॉन
मुस्लिम्स हु इमीग्रेटेड टू इंडिया फ्रॉम पाकिस्तान बांग्लादेश एंड अफगानिस्तान इज ब्लेट एट वायलेशन ऑफ द कांस्टिट्यूशन यानी
यह तो संविधान का ही खुले रूप से उल्लंघन है और हम भी इस कानून को लागू नहीं होंगे
नहीं होने देंगे केरला वाज द फर्स्ट लेजिस्लेटिव असेंबली टू पास अ रेजोल्यूशन
अगेंस्ट सीएए द गवर्नमेंट ऑफ केरला हैड अनाउंस दैट द एनपीआर विल नॉट बी
इंप्लीमेंटेड इन द स्टेट तो यह कहते हैं कि हम तो अपने राज्य में इसे लागू होने ही
नहीं देंगे और य उन्होंने साफ लिखा है इट विल
नॉट बी इंप्लीमेंटेड इन केरला पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी यही कह रही हैं
कि हम इसे पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देंगे इसके अलावा उन्होंने केरल के
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि भारत सरकार इस कानून की मदद से पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों
को नागरिकता क्यों नहीं दे रही वह सवाल उठा रहे हैं कि अगर सबको नागरिकता दी जा रही है तो मुसलमानों को क्यों नहीं दी जा
रही लेकिन आप खुद जरा सोचिए जब इन देशों में पर से ज्यादा मुसलमान रहते हैं और
यह सारे इस्लामिक देश हैं तो भारत इन मुस्लिम बाहुल्य के मुसलमानों को अपने देश
में आखिरकार नागरिकता क्यों देगा लेकिन केरल के मुख्यमंत्री और पश्चिम बंगाल की
मुख्यमंत्री ऐसा ऐसी मांग कर रहे हैं कि वहां के मुसलमानों को भी भारत में
नागरिकता दी जाए और उन्होंने यह भी कहा है कि इस कानून से भारत की धर्म निरपेक्षता को चुनौती मिलेगी अब आप सोचिए अगर इसमें
मुसलमानों को भी लागू कर लिया जाए तो फिर पश्चिम बंगाल में जो इतने बड़ी संख्या में जो लोग आते हैं जिन्हें हम गैर कानूनी
शरणार्थी भी कहते हैं उन सबको नागरिकता मिल जाएगी केरल के मुख्यमंत्री ने भी ऐलान
किया है कि वह सीएओ को अपने राज्य में लागू नहीं करेंगे और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी आज एक
ट्वीट किया है और उन्होंने सोशल मीडिया पर एक्स पर एक पोस्ट लिखा है उन्होंने कहा है
कि सरकार को देश में सीएए तभी लागू करना चाहिए था जब इस कानून को लेकर जो संदेह और
आशंकाएं हैं जब वो लोगों के मन से दूर हो जाएं यानी अभी लागू नहीं करना चाहिए था
पहले आशंका और संदेह दूर करो फिर लागू करो विपक्षी नेताओं की इन प्रतिक्रियाओं से आप
ये समझ सकते हैं कि हमारे देश में के लोकसभा चुनाव का बड़ा मुद्दा अब यह सीएए
बन सकता है और इस पर वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति अब खुलकर
होगी का ज बातिल करा होलो हम लके लाम एव आज ज का अधिकार के
े [संगीत] ल
[संगीत] मना डम
मना बीजेपी परिकल्पना
ना [संगीत]
च [संगीत]
चता को मानुष के ब
एनर बात तो यह है इतना विलं क्यों
किया और अगर विलंब किया तो चुनाव के बाद क्या
दिक्कत थी उनका एक मात्र उद्देश्य होता है हर
मुद्दे को ू मुसलमान में बाटो संविधान में हर व्यक्ति को अपने धर्म को पालन करने
का अधिकार है इसलिए अगर किसी कानून
में धर्म के आधार पर यह तय करे जाए किया जाएगा कि कौन नागरिक बन सकता है कौन नहीं
बन सकता है मेरे मत में यह भारतीय संविधान के खिलाफ है चुनाव के पहले जिन लोगों को
वो वादा किए थे कि हम नागरिकता देंगे और जिसको पहले वह गाली देते थे कि वोह
इल्लीगल माइग्रेंट है बांग्लादेशी घुसपैठिया है य आरएसएस कहती थी अब चुनाव
के वक्त उनके वोट लेने के लिए वो कहे कि तुमको हम नागरिकता देंगे लेकिन ऐसे वो नागरिकता दे नहीं सकते इसलिए रूल्स बनाए
रूल्स बना कर के व चुनाव पार कर लेंगे और एक तरफ कुछ लोगों को कहेंगे हम तुम्हारे नागरिकता को छीन रहे हैं और कुछ लोगों को
कहेंगे हम तुम्हें नागरिकता दे रहे हैं यह कोई लॉजस तोही है बच्चों का कि वो डाल देंगे कानून के तहत आप इतने आसानी से किसी
का नागरिकता ले भी नहीं सकते किसी को नागरिकता दे भी नहीं सकते तो अब ये सब करके बस हिंदू मुसलमान करेंगे भारत
पाकिस्तान करेंगे भारत बांग्लादेश करेंगे एक खेल आखरी खेल उनका चल रहा है
चलने दो लागू होने दो भी हटाया क्या किया कश्मीर में कश्मीर पंडित आ गए घर
में ये खेल करते रहते लोग अभी जब तक चुनाव है तब तक सी सी खेलेंगे खेलने दो लोकसभा
इलेशन से पहले सी का रू रेगुलेशन चालू हो जाएगा चालू हो गया हम जो बोलते हैं वो
करते हैं अब किसी की इससे तकलीफ नहीं है सब आनंद आनंद ही आनंद में है लेकिन हमारे
मुख्यमंत्री को नींद नहीं आ रहा है यही तकलीफ है
उनको सीएए के लागू होने के बाद देश भर में एक बार फिर से सुरक्षा को बढ़ा दिया गया
है और सुरक्षा के जो नए इंतजाम करने पड़ रहे हैं सरकार को वह तो मैं आपको बताऊंगा लेकिन उससे पहले एक बार और मैं आपको
आंकड़े फिर से बता देता हूं सोचिए वर्ष से लेकर के बीच कुल मिलाकर
लोग पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आ चुके हैं लाख लोग
और सीएए के लागू होने के बाद जो है इन लोग लाख लोगों को अब नागरिकता मिल जाएगी
इसमें कुछ और भी एडिशन हो सकती है क्योंकि यह तक जो लोग आए हैं वोह लेकिन आप सोचिए कि संख्या जो है बहुत कम है लाख
लोग जो हैं इतने वर्षों में
देखिए और यहां भी अगर आप देखेंगे पाकिस्तान से लाख लोग आए हैं मैं बड़ी
स्क्रीन पर आपको फिर से दिखाता हूं पाकिस्तान से लाख लोग बांग्लादेश से लाख लोग और
अफगानिस्तान से सिर्फ लोग भारत आए हैं तो आप यह समझ सकते हैं कि एक
करोड़ की आबादी में लाख लोग हैं वो भी इतने वर्षों में इतने दशकों में तक
से तक आप सोचिए सिर्फ लाख लोगों की बात है और इन लोगों को जो है जो
इस तरह के लोग हैं उन्हें नागरिकता देने की बात हो रही है और यह सारे लोग कौन है यह सारे लोग वह हैं जिन्हें धर्म के नाम
पर इन तीनों ही इस्लामिक देशों में भेदभाव का सामना करना पड़ा है इसलिए वह अपनी जान
बचाकर अपने ह्यूमन राइट्स को बचाने के लिए नव अधिकारों को बचाने के लिए वह यहां पर
आए हैं अब आप देखिए कि सीएए के लागू होने के बाद से ही देश भर में सुरक्षा बढ़ा दी
गई है और शाहीन बाग में भी सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं और ऐसी
सुरक्षा देश में तब बढ़ाई गई थी जब राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था
आपको याद होगा जिस दिन फैसला आना था और उसके फैसला आने के कुछ दिन बाद तक देश भर में सुरक्षा बढ़ा दी गई थी या फिर इसी साल
जब अयोध्या में राम मंद मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी तब भी देश में
सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने पड़े थे और इससे आप यह समझ सकते हैं कि हमारे देश की
स्थिति इस समय कैसी है कि इस कानून को लागू करने के लिए भी अब देश में एक बार
फिर से वैसी ही सुरक्षा करनी पड़ रही
है और अभी मैंने जो आपको लाख लोगों का बताया यह डाटा हमारे पास है लाख लोगों
का लेकिन इसमें धर्म के नाम पर इस डाटा का
डिफरेंशिएबल
मानों को नागरिकता की गारंटी देता है और इस गारंटी को हमारे देश के मुसलमान
नागरिकों से कोई नहीं छीन सकता भारत के संविधान के भाग दो के अनुच्छेद और
में इस बात का उल्लेख है कि इस देश के लोगों को जो नागरिकता दी गई है वह नागरिकता उनसे कोई नहीं छीन सकता उस
नागरिकता को छीना नहीं जा सकता और यह अनुच्छेद भारत के सभी नागरिकों को उनकी
नागरिकता के लिए सुरक्षा और गारंटी प्रदान करता है जिसका मतलब यह है कि भारत के ना
तो मुस्लिम नागरिक नागरिकों की नागरिकता ली जा सकती है यानी समाप्त की जा सकती है
और ना ही किसी और धर्म के लोगों की नागरिकता भारत में उनसे छीनी जा सकती है
हालांकि कई विपक्षी नेता अब भी इस कानून को लेकर गलत जानकारियां फैला रहे हैं और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने
भी कहा है कि भारत सरकार अपने ही देश के नागरिकों को तो नौकरी दे नहीं पा रही
लेकिन वह दूसरे देशों को यहां लाकर उन्हें नागरिकता देना चाहती है और इसलिए सरकार का
यह कानून सही नहीं है अब हम आप आपको को आज की एक और बड़ी खबर के बारे में बताते हैं
और व खबर यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई के यानी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के उस आवेदन को खारिज कर दिया है जिसमें
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहा था कि उसे राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बंड्स के जरिए चंदा देने वाले औद्योगिक घरानों और
लोगों के बारे में जानकारी देने के लिए जून तक का समय चाहिए सुप्रीम कोर्ट ने
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के इस आवेदन को खारिज करते हुए अपने आज के फैसले में तीन बड़ी बातें कही हैं पहली बात यह कि एस
सीआई को चुनावी बंड से जुड़ा सारा डाटा मार्च तक यानी कल तक चुनाव आयोग को उपलब्ध
कराना ही होगा और बाद में चुनाव आयोग को यही डेटा मार्च को शाम बजे तक अपनी
आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करना होगा और इससे यह डाटा देश के सभी नागरिकों के लिए
उपलब्ध हो जाएगा और इसमें कोई भी जानकारी गोपनीय नहीं रहेगी यहां गोपनीय जानकारी को
सार्वजनिक करने का मतलब यह है कि जिन लोगों ने चुनाव में अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए यह चुनावी
बंड्स खरीदे थे उन सभी लोगों के नाम और जिन पार्टियों ने चुनावी बॉन्ड्स एनकैश
कराए थे उसकी पूरी जानकारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को अब चुनाव आयोग को देनी होगी और
फिर चुनाव आयोग मार्च को शाम बजे तक यह सारी जानकारी अपनी अधिकारिक वेबसाइट
पर प्रकाशित कर देगा अब यहां बहुत सारे लोगों के मन में सवाल भी होगा कि आखिर यह
डाटा सिर्फ एसबीआई से ही क्यों मांगा जा रहा है एक बैंक से ही क्यों तो इसकी वजह यह है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इन चुनावी
बंड्स को जारी करने वाला देश का इकलौता अधिकृत बैंक है और इसीलिए अभी यह डाटा
सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास ही है स्कीम के तहत किन लोगों ने किन व्यापारियों ने किन उद्योगपतियों ने और
किन बड़ी कंपनियों ने चुनावी बंड्स खरीदे और किन-किन राजनीतिक पार्टियों ने इन
चुनावी बंड्स को कब-कब एनकैश कराया था यह जानकारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास है
जो अभी तक गोपनीय थी कोई पता नहीं लगा सकता सरल शब्द में कहे तो सुप्रीम कोर्ट यह चाहता है कि देश के लोगों को यह बात
पता चलनी चाहिए कि चुनावों में किन लोगों ने किन व्यापारियों ने किन बड़े-बड़े
उद्योगपतियों ने किन बड़ी-बड़ी कंपनियों ने राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए यह इलेक्टोरल बंड्स खरीदे थे पता तो
चले और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि चुनावी बंड से जुड़ी इस योजना में
चंदा देने वाले लोगों की पहचान को गोपनीय रखना असल में सूचना के अधिकार का उल्लंघन
है और मोदी सरकार की इस योजना पर तत्काल रोक लगनी चाहिए यानी सुप्रीम कोर्ट यह चाहता है कि देश के हर व्यक्ति को यह पता
लगाने का पूरा अधिकार है कि किस पार्टी की फंडिंग कहां से आ रही है किस पार्टी को कौन उद्योगपति कौन बड़ा व्यापारी कौन बड़ी
कंपनी पैसा दे रही है चुनावी फंड के नाम पर और उस समय सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को
मार्च तक ये सारा डाटा चुनाव आयोग को उपलब्ध कराने के आदेश दिए थे लेकिन एसबीआई
ने ऐसा नहीं किया और आज एसबीआई ने कहा कि वह ऐसा अभी नहीं कर सकता क्योंकि उसे और
समय चाहिए एसबीआई का कहना है कि हमें जून तक का समय दीजिए तब हम कर पाएंगे अब
आप सोचिए जून मतलब लोकसभा चुनावों के बाद यानी लोकसभा चुनाव से पहले किसी को
नहीं पता चलेगा कि किस पार्टी का चंदा कहां से आया और सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि यह बात लोगों को अभी पता चले और इसीलिए
सुप्रीम कोर्ट को आज यह फैसला सुनाना पड़ा कि नहीं हम जून तक का समय नहीं देंगे
कल शाम तक सारा डाटा हमें चाहिए अब देखिए सबसे बड़ी बात यह कि
सुप्रीम कोर्ट नेय फैसला एसबीआई की उस याचिका पर सुनाया जिसमें उसने चुनावी बंड
से जुड़ा डाटा चुनाव आयोग को उपलब्ध कराने के लिए जून तक का समय मांगा था अब
जून तक का समय क्यों मांगा आप यह भी जानना चाहेंगे कि इतना समय क्यों लग रहा है और
इसी के बाद एसबीआई पर सवाल उठने शुरू हो गए कि भाई स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यह डाटा
देना क्यों नहीं चाहता आखिर क्या है इसमें ऐसा और कहा गया कि एसबी एसबीआई ने जून
तक का समय इसलिए मांगा क्योंकि वह लोकसभा चुनाव से पहले इस जानकारी को शायद सार्वजनिक नहीं करना चाहता यानी एसबीआई की
जो मंशा है उस पर लोगों को शक हो रहा है अब यहां कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि
एसबीआई एक सरकारी बैंक है इसलिए सरकार एसबीआई को लोकसभा चुनाव से पहले यह डाटा
जारी करने से रोक रही है लेकिन इन आरोपों की सच्चाई क्या है और एसबीआई को जून तक
का समय क्यों चाहिए था शायद असली वजह किसी को नहीं पता इसलिए आज असली का कहानी हम
आपको सुना रहे हैं ध्यान से सुनिए और यह कहानी बड़ी दिलचस्प है असल में एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में
जो याचिका दी उसमें बैंक ने एक बहुत बड़ी बात कही थी बैंक ने कहा था अगर उसे यह
बताना है कि किसी व्यक्ति और कंपनी का इलेक्टोरल बॉन्ड चंदे के रूप में किस
राजनीतिक पार्टी को मिला है तो इसके लिए उसे इन चुनावी बंड्स को खरीदने वाले और इन
बॉन्ड्स को एनकैश कराने वाली राजनीतिक पार्टियों के डाटा को पहले मिलाना होगा
मैच कराना होगा उसका मिलान करना होगा यानी एक डाटा है जिन्होंने चुनावी बंड खरीदे
हैं यह एक डाटा है और फिर उस चुनावी बंड को किस पार्टी ने एनकैश कराया यह दूसरा
डाटा है तो यह दो डाटा है और इनका मैच होना बड़ा जरूरी है इसी के बाद तो यह पता
चलेगा कि इस योजना के तहत किस व्यक्ति ने व्यापारी ने और उद्योगपति ने किस कंपनी ने
किस पार्टी को कितना चंदा दिया क्योंकि इस डेट को मैच कराने में समय लगता इसलिए
एसबीआई ने जून तक का समय मांगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह समय देने से इंकार कर
दिया अब देखिए आगे अब क्या होगा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने तो कभी भी एसबीआई को
इस डाटा को एक दूसरे से मिलाने के लिए कहा ही नहीं था और वह तो अब भी यह नहीं कह रहा
कि आप यह डाटा आपस में मैच कीजिए जैसे मैंने आपको बताया यह दो तरह के डाटा हैं तो सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि आपको मैच
करने की आवश्यकता ही नहीं है हमने कब कहा कि आप दोनों को मैच कीजिए
और हम तो अब भी नहीं कह रहे और इसीलिए एसबीआई को अगले घंटे में यह डाटा एक
दूसरे से बिना मैच कराए चुनाव आयोग को देना होगा और यह एक बहुत बड़ा पॉइंट है
जिस पर अभी शायद किसी का भी ध्यान गया नहीं है असल में एसबीआई ने अगर बिना मैच
कराए यह डाटा पब्लिश कर दिया तो इससे यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाएगा कि किस
पार्टी को किस व्यक्ति कंपनी या उद्योगपति ने चुनावी बंड्स के रूप में चंदा दिया और
सोचिए जब यही बात लोगों को नहीं पता चल पाएगी तो फिर इस जानकारी के सार्वजनिक होने का मतलब क्या है यानी आपके पास दो
अलग-अलग डाटा परसों शाम तक आ जाएंगे आप देख पाएंगे लेकिन आपको यह समझ में नहीं
आएगा कि इस डाटा का मतलब क्या है और किस कंपनी ने और किस व्यापारी ने उद्योगपति ने
किस पार्टी को यह पैसा दिया है अब आप यह देखिए कि चुनावी बंड से जुड़े इस डाटा को मैच कराना जरूरी क्यों था एसबीआई के
मुताबिक चुनावी बंड्स को खरीदने की योजना बिल्कुल गोपनीय थी इसलिए बैंक ने बॉन्ड को
खरीदने वाले व्यक्ति कंपनी या उद्योगपति का नाम बॉन्ड खरीदने की तारीख उसे जारी
करने वाली ब्रांच बॉन्ड की कीमत और बॉन्ड की संख्या के डाटा के लिए कोई सेंट्रल
सिस्टम बनाया ही नहीं इसका मतलब यह हुआ कि इन चुनावी बंड्स को खरीदने वाले और इन्हें एनकैश कराने वाली राजनीतिक पार्टियों का
डाटा उपलब्ध है तो यह डेटा तो मौजूद है लेकिन इसे अभी तक एक दूसरे से मिलाया नहीं
गया और ऐसा इस योजना की प्रक्रिया की वजह से हुआ जिसमें इस योजना के दो चरण थे पहले
चरण में बैंक चुनावों के दौरान कुछ समय के लिए चुनावी बंड्स जारी करता था जिसे लोग
और कंपनियां एसबीआई की निर्धारित शाखाओं में जाकर खरीद सकते थे उदाहरण के लिए मान
लीजिए अगर किसी कंपनी ने एसबीआई से करोड़ रुप का चुनावी बॉन्ड खरीदा तो उसे
यह बॉन्ड खरीदते समय यह नहीं बताना होगा कि यह बॉन्ड वह किस पार्टी को देने के लिए खरीद रहा है इसका मतलब यह हुआ कि यह बैंक
के पास सिर्फ चुनावी बॉन्ड को खरीदने वाले व्यक्ति की जानकारी है उसने किसके लिए खरीदा यह जानकारी नहीं है और बाद में यह
कंपनी इस चुनावी बॉन्ड को अपनी मनपसंद राजनीतिक पार्टी को चंदे के रूप में दे
देती थी और राजनीतिक पार्टियों को दिनों के अंदर इस चुनावी बॉन्ड को एसबीआई
के पास जाकर इन्हें एनकैश कराना होता था और इस तरह से इसका डाटा अलग होता था और
किस पार्टी ने कितनी राशि के चुनावी बॉन्ड्स एनकैश कराए हैं यह डाटा अलग है इन
सभी बंड्स का एक नंबर जरूर होता था जिसे मैच कराने के लिए ही एसबीआई ने जून तक
का समय मांगा था और कहा कि अगर लोगों को यह बताना है कि किस व्यक्ति और कंपनी ने किस पार्टी को कितने रुपए के चुनावी बंड्स
दिए तो इसमें समय लगेगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट से बैंक को यह समय नहीं मिला और अब इन
चुनावी बंड्स का डटा तो आएगा लेकिन शायद इस बात की स्पष्टता इसमें कम हो सकती है
कि बीजेपी या कांग्रेस या फिर किसी दूसरी पार्टी को किस व्यक्ति और कंपनी से चुनावी बंड्स के रूप में कितना चंदा मिला है इससे
भी बड़ी बात यह है कि इस योजना में बंड्स की कीमत भी क्या रखी गई लाख
लाख और एक करोड़ रुपए यह अलग-अलग जो है बॉन्ड्स की कीमत रखी गई मान लीजिए अगर
आपको ₹ करोड़ रुपए किसी पार्टी को देने हैं तो आपको एक एक करोड़ के दो बंड खरीदने पड़ेंगे इसलिए इस लिहाज से भी किसी और के
लिए इस डाटा को मैच कराना आसान नहीं होगा क्योंकि अगर किसी पार्टी ने मान लीजिए
करोड़ भी दिए तो उसने फिर – करोड़ के बंड्स खरीदे होंगे और यह बीजेपी के
लिए या किसी भी पार्टी के लिए अभी आप यह कह सकते हैं कि किस पार्टी को कहां से यह
चंदा मिला है अभी जो डाटा आएगा हमें ऐसा लगता है कि उस डाटा से यह बात स्पष्ट नहीं
होने वाली कि किस पार्टी का चंदना कहां से आ रहा है वर्ष से मार्च के बीच
देश के लोगों से और औद्योगिक घरानों से सभी राजनीतिक पार्टियों को कितना चंदा मिला उसमें सबसे ज्यादा कितना किस पार्टी
को मिला है देखिए मैं आपको स्क्रीन पर अभी दिखाता हूं देखिए आपके सामने है बड़ी स्क्रीन पर मैं आपको यह दिखाने की
कोशिश करता हूं जिससे आपको पता चलेगा इसमें अगर आप देखेंगे सबसे ज्यादा चंदा
बीजेपी को मिला है दूसरे नंबर पर कांग्रेस और देखिए आप हैरान रह जाएंगे तीसरे नंबर
पर तृणमूल कांग्रेस को मिला है चौथे नंबर पर बीजेडी पांचवें पर डीएम के छठे पर
बीआरएस और अगला नंबर है वाईएस आरसीपी पार्टी
का एसबीआई द्वारा साढ़े महीने मांगने के बाद साफ हो गया कि मोदी
सरकार अपने काले करतूतों को पर्दा डालने का कोशिश कर रहे हैं
क्योंकि चार महीने क्यों होना आपके पास डाटा है और डाटा का मास्टरी आपने किया है
एक दोज लोग दिए होंगे बंड्स उतने लोगों की लिस्ट नहीं मिलती
आपको तो क्यों छुपा रहे हैं सुप्रीम कोर्ट बोल रहा है लेकिन आप एसबीआई को नहीं बोल
सकते क्योंकि सिलेक्शन आप ही तो कर रहे हैं सेंट्रल इलेक्शन कमेटी का सिलेक्शन आप
ही का है बीई इलेक्शन आप ही का है अगर हम वहां जाके अपोजिशन लीडर अगर सजेशन भी देते एक
सजेशन नहीं सुनते पूरे देश की जनता को इस बात की खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से कम से
कम वो सूची आ जाएगी जिस सूची में यह पता लग जाएगा कि इलेक्टोरल बंड किन्ने दिए
हैं अब सवाल यह है कि वह सार्वजनिक होगा कि नहीं होगा हम और आप जान पाएंगे कि नहीं
जान पाएंगे बी बी तो जानती है कि उसे कहां से चंदा मिला है या हमें चंदा मिला होगा
तो हमें तो पता है कि कहां से चंदा मिला है यह जनता जान पाएगी कि नहीं जान पाएगी सबसे बड़ा सवाल है हमारे देश की
जनतांत्रिक व्यवस्था और चुनावी व्यवस्था के लिए बड़ी अच्छी बात है कि खुलासा हो कि
किस तरीके से राजनीतिक पार्टियों को चुनाव के नाम पर जो पैसा इकट्ठा कर रहे हैं वह
किस तरीके से उनको मिला और कौन दिया यह पैसा तो यह भी पता चलेगा जो दिया यह पैसा
उसको वापस क्या दिया मोदी सरकार ने और यही है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार का कानूनी
दर्जा देना जो मोदी सरकार ने दिया आज जो फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया
है इससे पहले चुनावी बंड्स पर सुप्रीम कोर्ट का जो रुख रहा है उससे यह बात स्पष्ट है कि हमारे देश में जो
न्यायपालिका है वह कितनी स्वतंत्र है उससे यह पता चलता है न्यायपालिका बिना किसी
सरकारी दबाव के काम कर कर रही है उससे यह बात पता चलती है और हाल ही के दिनों के दो बहुत अहम फैसले सुप्रीम कोर्ट ने सुनाए
हैं जिनसे यह पता चलता है कि हमारे देश में न्यायपालिका जो है वह आज भी उतनी ही स्वतंत्रता के साथ काम कर रही है जितना कि
हमें उम्मीद है और वह दो फैसले थे आपको याद होगा चंडीगढ़ में मेयर का चुनाव
जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही कड़ा फैसला सुनाया था और दूसरा फैसला है यह चुनावी बंड्स का फैसला जिसमें सुप्रीम
कोर्ट ने पहले दिन बहुत कड़ा फैसला सुनाया और आज भी सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ
इंडिया को समय देने से इंकार कर दिया और कह दिया कि कल शाम तक पूरा डाटा हमें
चाहिए अब आपको क्या करना है हमारे देश में और भी बहुत सारे ऐसे लोग होंगे जो जरूर यह
जानना चाहेंगे कि आखिर किस कंपनी ने किस उद्योगपति ने किस व्यापारी ने किस पार्टी
को चंदा दिया है तो अगर सुप्रीम कोर्ट ने आपके लिए रास्ता खोल दिया है कि आपको भी
यह जानकारी मिल सके तो फिर परसों शाम को शाम बजे के बाद आप इलेक्शन कमीशन की
की वेबसाइट पर जा सकते हैं और यह पता कर सकते हैं कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कौन
सा डाटा इलेक्शन कमीशन को दिया है और वह डाटा आपके सामने होगा हमें भी इस बात का
इंतजार रहेगा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया किस प्रकार का डाटा सार्वजनिक करता है और उस
डाटा से आगे चलकर हमें क्या बातें पता चलती हैं जो हमें पहले से नहीं पता थी या
हमसे छुपाने की कोशिश है और इसमें सभी पार्टियां एक साथ होंगी इसमें आपको पता चलेगा कि बीजेपी को फंड करने वाले कौन है
आपको यह भी पता चलेगा कि कांग्रेस को फंड करने वाले कौन हैं आपको यह भी पता चलेगा कि तृणमूल कांग्रेस को फंड करने वाले
कौन-कौन से व्यापारी हैं कौन से उद्योगपति हैं कौन सी बड़ी-बड़ी कंपनियां
है अब आपको यह बताएंगे कि मशहूर पहलवान बजरंग पुनिया ओलंपिक खेलों के लिए हुए
ट्रायल में हार गए हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि बजरंग पुनिया ओलंपिक खेलों के
क्वालीफायर राउंड तक भी पहुंच नहीं पाए ट्रायल मैच में वर्ष के बजरंग
पुनिया का मुकाबला वर्ष के रोहित कुमार से था जो आज तक ओलंपिक खेलों में भारत के
लिए कभी नहीं खेले हैं जबकि बजरंग पुनिया टोक्यो ओलंपिक्स में भारत के लिए ब्रोंज
मेडल जीत चुके हैं लेकिन इसके बावजूद रोहित कुमार ने एक बहुत बड़े अंतर से और
बहुत आसानी से एक के बड़े अंतर से बजरंग पुनिया को इस ट्रायल मैच में हरा दिया तो
सोचिए से बजरंग पुनिया हारे तो इससे आपको यह समझ में आएगा किय जो पूरी जो बाउट
थी ये फाइट जो थी वन साइडेड थी एक तरफा थी बजरंग पुनिया मुकाबला ही नहीं कर पाए
रोहित कुमार का और इससे भी बड़ी बात यह है कि रोहित कुमार खुद ट्रायल मैचों के फाइनल में एक दूसरे पहलवान सुरजीत सिंह से हार
गए यानी व आगे चलकर वह भी हार गए इसका मतलब क्या है इसका मतलब है कि बजरंग पुनिया को जिस खिलाड़ी ने ट्रायल में
हराया वो ट्रायल मैचों में खुद भी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी नहीं था और अब वह इस
साल पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में हिस्सा नहीं ले पाएंगे और यहां बड़ी बात यह कि अगर
ब्रजभूषण शरण सिंह ने भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष रहते हुए कोटा सिस्टम को खत्म
नहीं किया होता तो शायद बजरंग पुनिया आज भी ओलंपिक खेलों में भारत की तरफ से खेलने
के लिए जा रहे होते क्योंकि पहले हमारे यहां एक कोटा सिस्टम था और अगर वह कोटा
सिस्टम होता तो बजरंग पुनिया ही इस बार ओलंपिक में खेलते लेकिन क्योंकि वो कोटा
सिस्टम हट गया जिसकी वजह से इन बड़े-बड़े खिलाड़ियों को ट्रायल देना पड़ रहा है इसलिए आज बजरंग पुनिया बाहर हो गए बृजभूषण
शरण सिंह ने यह नियम बनाया था कि अब किसी भी खिलाड़ी के लिए ओलंपिक खेलों का कोटा
मान्य नहीं होगा और अब ओलंपिक खेलों से पहले कोटा हासिल करने वाले बड़े-बड़े खिलाड़ियों को भी ट्रायल तो देना ही
पड़ेगा और अगर ट्रायल में वो फेल होते हैं तो फिर उन्हें ओलंपिक खेलों में नहीं भेजा जाएगा चाहे वो कितने भी बड़े खिलाड़ी हो
कितने भी बड़े सेलिब्रिटी हो और चाहे उन्होंने पिछले ओलंपिक में या एशियन गेम्स में कितने भी बड़े-बड़े मेडल जीते हो
लेकिन एक तथ्य यह भी है कि जब पिछले साल इन खिलाड़ियों के आंदोलन की वजह से भारतीय कुश्ती संघ का नेतृत्व एक एड हॉक कमेटी को
सौंपा गया तब इस कमेटी ने बिना ट्रायल दिए ही बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट का एशियन
गेम्स के लिए चयन कर लिया गया कर दिया था और उस समय बजरंग पुनिया एशियन गेम्स में
खेलने के लिए गए बिना ट्रायल दिए क्योंकि कोटा सिस्टम के तहत उन्हें फ्री एंट्री दे
दी गई और बजरंग पुनिया एशियन गेम्स में बिना मेडल जीते ही इस प्रतियोगिता से बाहर
हो गए थे एशियन गेम्स में और तब भी इस पर काफी विवाद हुआ था और लोगों ने कहा था कि नहीं ट्रायल तो होना ही चाहिए और जो
जूनियर खिलाड़ी थे वह लगातार इस बात की मांग कर रहे थे कि ट्रायल होना चाहिए क्योंकि जब तक ट्रायल नहीं होगा तब तक नए
खिलाड़ियों को कभी मौका ही नहीं मिलेगा और ये जो बड़े-बड़े खिलाड़ी हैं सेलिब्रेटेड और सेलिब्रिटी खिलाड़ी हमेशा यही ओलंपिक
खेलों में जाते रहेंगे बड़ी बात यह है कि अगर बजरंग पुनिया एशियन गेम्स में ब्रोंज मेडल जीत जाते इस बार भी तो शायद उन्हें
ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए ट्रायल देना ही ना पड़ता क्योंकि पुराने नियम कहते हैं कि अगर कोई खिलाड़ी एशियन गेम्स
में मेडल जीत कर आता है तो उसे ओलंपिक खेलों के लिए कोटा मिल जाता है और इस बार भी शायद ऐसा ही होता लेकिन क्योंकि बजरंग
पुनिया एशियन गेम्स में भी हार गए थे इसलिए उन्हें ओलंपिक खेलों के लिए यह ट्रायल देना पड़ा और अब वह ट्रायल में
अपने हार की वजह से ओलंपिक खेलों में भी अब खेल नहीं पाएंगे रोहित कुमार ने जो कि
उनसे उनके एक जूनियर पहलवान है बजरंग पुनिया के जूनियर हैं इस ट्रायल को जीतने
के बाद रोहित कुमार ने क्या कहा वह सुनिए बहुत अच्छा बच्चों ने प्रदर्शन किया
हमारी टेक्निकल टीम ने बहुत अच्छी तरह कंडक्ट कराया बहुत स्मूथली सब ट्रायल्स हुए हैं और यह सब इंटरनेशनल इवेंट में अब
जो आने वाले इंटरनेशनल एशिया चैंपियनशिप एशिया क्वालीफाइंग वर्ल्ड क्वालीफाइंग और
ओलंपिक तक कैंप्स लगते र रहेंगे और इससे क्वालीफाई होकर बच्चे ओलंपिक तक हमारे जाएंगे और देश के लिए मेडल
लाएंगे देखिए किसी भी खिलाड़ी की जो असली पहचान होती है और वह किस लायक है यह बात
खेल के मैदान में पता चलती है हम यही चाहेंगे कि हमारे देश की जो बेहतरीन
प्रतिभा है उसे मौका मिलना चाहिए और जो बेहतरीन प्रतिभा है चाहे वह जूनियर हो चाहे वह सीनियर हो चाहे वह सेलिब्रिटी
खिलाड़ी हो या फिर कोई नया फ्रेशर हो उसे मौका मिलना चाहिए और किसी को भी ओलंपिक या
एशियन गेम्स में जो एक बर्थ मिलता है ऐसे व्यक्ति को नहीं मिलना चाहिए जो कि उसके
काबिल नहीं है या जिसकी प्रैक्टिस में कोई कमी है या जिसने ठीक से मेहनत नहीं की है
हम बस इतना कहना चाहते हैं और हमारा जो प पहले आंदोलन हुआ किन मुद्दों पर यह आंदोलन
हुआ यह उस पर कोई टिप्पणी नहीं है हमारा उस आंदोलन से आज हम इस खबर को उस आंदोलन
से बिल्कुल अलग रखते हैं क्योंकि बजरंग पुनिया आंदोलन में बैठे थे यह भी हो सकता है कि उस आंदोलन की वजह से वो प्रैक्टिस
ना कर पाए हो यह भी हो सकता है कि जो उनकी लय है वो टूट गई हो क्योंकि एक लंबा गैप
एक लंबा इंटरवल उनके जीवन में उस आंदोलन की वजह से आ गया था यह कारण हो सकता है
लेकिन देखिए खेल का मैदान जो होता है वो न्यूट्रल होता है वो ये नहीं देखता कि कौन खिलाड़ी कितना बड़ा है या कौन कितना
जूनियर है अब आपको ये बताते हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस के बड़े नेता अधीर रंजन चौधरी के
खिलाफ मशहूर क्रिकेटर यूसुफ पठान को चुनावी मैदान में क्यों उतारा है और अधीर
रंजन इससे परेशान क्यों है टीएमसी ने पश्चिम बंगाल की सभी सीटों
पर अपने लोकसभा उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है और इससे स्पष्ट हो गया है
कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी का मुकाबला अब इंडिया गठबंधन से नहीं होगा बल्कि सीधी
टक्कर ममता बनर्जी से है और पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन का कोई अस्तित्व है ही
नहीं वर्ष के लोकसभा चुनाव में टीएमसी को पश्चिम बंगाल की और बीजेपी
को सीट मिली थी कांग्रेस ने दो सीट जीती थी जिसमें बहरामपुर सीट पर अधी रंजन
चौधरी जीते थे लेकिन इस बार ममता बनर्जी ने उनके खिलाफ यूसुफ पठान को उम्मीदवार
बना दिया है और उनकी मुश्किल बढ़ा दी है अधीर रंजन चौधरी इस सीट से पांच बार
लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं और वर्ष से आज तक वो एक बार भी इस सीट से कभी
हारे नहीं लेकिन जब से टीएमसी ने यूसुफ पठान को टिकट दिया है तब से अधीर रंजन
चौधरी ममता बनर्जी पर लगातार हमला कर रहे हैं नाराज हो रहे हैं और ममता बैनर्जी पर
मुस्लिम वोटों की राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं और इसका कारण यह है कि पश्चिम बंगाल की एक ऐसी सीट है जहां मुस्लिम
वोटर्स ज्यादा है पश्चिम बंगाल की यह जो सीट है बहरामपुर
सीट यहां लगभग पर मुस्लिम वोटर हैं और अधि रंजन चौधरी की जीत में मुस्लिम
मतदाताओं की बड़ी भूमिका होती थी लेकिन अब यूसुफ पठान के आने से यह मुस्लिम वोट बट
जाएंगे एक और वो भी दो तरीके से एक तो एक तो यह कि कि पश्चिम बंगाल के जो मुस्लिम वोटर्स हैं व ममता बैनर्जी को पसंद करते
हैं और अगर उन्हें एक विकल्प दिया जाए तो वह ममता बैनर्जी के उम्मीदवार की तरफ जाएंगे और वह उम्मीदवार भी अगर यूसुफ पठान
जैसा हो जो कि खुद एक मुस्लिम कैंडिडेट भी है और साथ ही एक बहुत मशहूर क्रिकेटर भी
है उनका अपना एक जादू है लोगों ने उन्हें भारतीय टीम में खेलते हुए देखा है आईपीएल में खेलते हुए देखा है इसलिए अधीर रंजन
चौधरी की जो मुश्किले हैं बहुत बढ़ गई है देखिए मुझे बहुत प्यार मिला है कोलकाता
हमेशा प्यार मिला और उसके बदले में मैं यहां प उनको श करूंगा और ये अच्छा मौका दिया है मुझे पन भा के लोगों को य के
लोगों को यहां के लोगों को मैं सर्व करूंगा और उनके जो भी वॉइस ओवर है वो पार्लियामेंट में लेके जामसी ने मुझे इस
काबिल समझा कि मैं लोगों की मदद कर सकता हूं और उनका वॉइस ओवर पार्लियामेंट में लेके जा सकता हूं और उनको हेल्प कर सकता
हूं तो यह मेरे लिए एक अपॉर्चुनिटी था और मैंने ये डिसाइड किया बस ममता बनर्जी की
अगर कोई अच्छा सोच होती तो कम से कम गुजरात
में गठबंधन से एक सीट की मांग कर लेती कि मेरा एक ही उम्मीदवार खड़ा होगी गुजरात से
उनके नाम नींद भी कितनी अजीब चीज है आ जाए तो सब कुछ भुला देती है और ना आए तो बहुत
कुछ याद दिला देती है