भगवान शिव बताते है अकेले खुश कैसे रहें।

प्रिय भक्तगण आज हम आपको एक कथा का श्रवण
करा र हूं जो सुनने मात्र से आपके जीवन
में सुख संपत्ति और धन की वर्ष होगी तो
चलिए कथा को प्रारंभ करते हैं भगवान शिव
माता पार्वती से कहते हैं हे देवी क्या

आपने कभी सोचा है कि बदलते युगों के साथ
इंसान का रहन सहन भी क्यों बदल रहा है और
साथ में उनके जीने का तरीका भी बदल रहा है
इस युग में इंसान ऐसे हैं जो किसी मजबूरी
के कारण अकेले रहते हैं तो कुछ न ऐसे भी

हैं जो बिना किसी मजबूरी के अपनी मर्जी से
अकेले रहना पसंद करते हैं वह इंसान अपने
काम को सच्ची लगन से अकेले ही करते रहते
हैं जो इंसान अपनी मर्जी से अकेले रहते
हैं उनमें तो बहुत कुछ बुनियादी गुण होते

हैं ऐसे इंसान जीवन में जल्दी ही बहुत कुछ
हासिल भी कर लेते हैं और दूसरी ओर ऐसे भी
इंसान होते हैं जो एक पल के लिए भी अकेला
नहीं रह सकते ऐसे इंसान का अकेला पर जाना
जैसे अंधेरी काल कोठरी में जीवन भर के लिए
सजा काट

ऐसे इंसान इस भाग दौर भरी जिंदगी में उलझ
जाते हैं क्योंकि इनको अकेले रहना पसंद
नहीं वैसे इंसान को खुद के लिए समय ही
नहीं होता है खुद के काम के लिए समय नहीं
होता है फिर ऐसे इंसान यह सोचकर पछताते
हैं कि काश इस भाग दौर भरी जिंदगी से दूर
होकर खुद के लिए समय निकाल लिया होता तो

आज ऐसे दिन नहीं आते फिर भगवान शिव कहते
हैं पर अकेला रहना हर किसी के लिए वाकई
आसान काम नहीं है तब माता पार्वती कहती है
इंसान अकेले रहने का यह मतलब है कि इंसान
अपने घर परिवार रिश्ते नाथों मित्रों से
दूर रहे अकेले रहने के लिए तब भगवान शिव
कहते हैं नहीं नहीं देवी यह एक कला होती
है जो आगे हम इस कहानी में बताऊंगा कि
इंसान कैसे एकांत में रहकर अपने काम अपने

सम्मान अपनी प्रतिष्ठा और अपने उज्जवल
भविष्य को कैसे आगे बढ़ा सकता है इंसान
अकेले रहने के साथ अमूल्य गुणों के बारे

में भी जानेंगे इसलिए देवी यह कहानी बहुत
ही मजेदार है ध्यान से सुनिए अगर आप यह
कहानी सुन रहे हैं तो पूरा सुनिए इस कथा
को आधा अधूरा छोड़कर जाने की गलती मत
करिएगा क्योंकि इस पवित्र कथा को पूरा
सुनने से मन चाहा फल की प्राप्ति होगी

इसलिए इस कथा को पूरा सुने आप शिव भक्त
हैं तो भोलेनाथ का अनादर ना करें एक
व्यक्ति एक संत के पास आया और बोला

गुरुदेव मेरे दुख का कारण क्या है संत
बहुत ही बरे आत्मज्ञानी व्यक्ति थे फिर
संत कहते हैं अपने आप को किसी वस्तु से
चिपका लेना उस चीजों को पकड़ लेना और उन
चीजों के प्रति आकर्षित होकर उसके पीछे
भागना ही तुम्हारे दुख का कारण है फिर वह
व्यक्ति ने गुरु का धन्यवाद किया और कहा

गुरुदेव आपने तो मेरी समस्या का समाधान कर
दिया मैं इतने दिनों से अपनी समस्या का
समाधान चाहता था आपका धन्यवाद गुरुदेव यह
कहकर वह व्यक्ति वहां से जाने लगा फिर संत

ने कहा पूरी बात तो सुन लो उस व्यक्ति ने
कहा नहीं गुरुदेव आपकी सारी बात समझ में आ
गई और समझदार को सिर्फ एक इशारा काफी होता
है एक महीने बाद वह व्यक्ति फिर से गुरु

के पास आता है इस बार उस व्यक्ति का हालत
पिछले बार से ज्यादा बुरा था और वह बहुत
दुखी भी था वह व्यक्ति सीधे संत के चरणों
में जा गिरा और कहा गुरुदेव आपने जो कहा
था मैंने वैसे ही किया पर मुझे खुशी नहीं

मिल पाई मुझे तो और दुख ही मिल रहा है फिर
गुरु ने उस व्यक्ति से पूछा तुमने ऐसा
क्या किया व्यक्ति ने कहा शुरू में दो चार
दिन तो मुझे बहुत अच्छा लगा पर धीरे-धीरे
मुझे उनकी याद आने लगी अपने माता-पिता
अपनी पत्नी अपने बच्चे याद आने लगे मैंने
सभी को छोड़कर खुश रहने की कोशिश की लेकिन
मुझे परिवार वालों से मित्रों और
रिश्तेदारों से दुख ही मिलता था तो मैंने

उन्हें छोड़ दिया लेकिन जैसे-जैसे समय
बीतता रहा वैसे-वैसे रिश्ते रिश्तेदार
यहां तक कि अपने शत्रु भी मुझे याद आने
लगे और मैं अपने आप को और ज्यादा दुखी
महसूस कर रहा था इतना दुख तो मैंने उनके

पास रहकर भी नहीं जाना था जितना कि उनसे
दूर होकर दुखी हो गया हूं इसलिए आज मैं घर
वापस जा जाने के लिए निकला था और आपके पास
आ पहुंचा आपने मुझे इतनी गलत सलाह क्यों
दी संत मुस्कुराए और कहा तुम अपने परिवार
मित्रों रिश्तेदारों और यहां तक कि
शत्रुओं को भी छोड़कर भागे पर यह तुम्हारी
गलती थी कि तुम उन्हें छोड़कर भाग गए थे
वास्तव में तुम उन्हें अपने साथ लेकर भाग

रहे थे फिर व्यक्ति ने कहा पर गुरुदेव मैं
तो किसी को अपने साथ नहीं लाया फिर गुरु
ने कहा जो रिश्ते हमें दुख देती है वह

कहीं बाहर नहीं जाती यहां तक कि जो हमें
सुख देती है वह कभी बाहर नहीं जाती है यह
परिवार वाले रिश्तेदार मित्र एवं शत्रु यह
सब कहां बसते हैं यह सब हमारे मन में बसते
हैं और जब तुम भागे तो तुम अपने मन को साथ
लेकर भागे और तुम्हारे मन में यह सब
तुम्हारे साथ भागे तो तुम इनसे कहीं दूर

नहीं गए जब जो चीजें मन में बसी हो और वह
आसपास ना हो तो वह दुख देती है वह हमें
बहुत याद आती है और जब हम इन चीजों से दूर

हो जाते हैं यानी छोड़कर भाग जाते हैं तब
मन उन चीजों को पाने के लिए फिर से प्रयास
करने लगती है और तब यह चीजें बहुत ज्यादा
दुख देने लगती हैं जैसे तुम्हें आज हो रहा
है व्यक्ति ने कहा तो गुरुदेव मैं क्या
करूं रिश्तों के साथ रहूं तो दुख रिश्तों
को छोड़कर जाओ तो ज्यादा दुख क्या मैंने
सिर्फ दुख उठाने के लिए ही जन्म लिया है
इस बात पर संत जोर से हंसे और कहा यह बात

बिल्कुल सत्य नहीं है यहां सब सिर्फ दुख
उठाने के लिए जन्म नहीं लेते हैं पर यह भी
सत्य है कि इन दुखों के पार सुख है और उन

सुख के पार दुख है फिर सुख और फिर दुख है
जिन रिश्तों में हमें सुख नजर आता है वह
दुख देता है और जिनमें दुख नजर आता है वही
सुख का कारण बन जाता है फिर उस व्यक्ति ने
कहा गुरुदेव क्या इस सुख दुख के माया जाल
से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है फिर
संत ने कहा रास्ता तो है अगर तुम इसी
दुनिया में रहना चाहते हो इन सबके साथ
रहना चाहते हो तो तुम्हें एक काम करना
होगा तुम ऐसे ही रहो जैसे कि तुम इस
दुनिया में अकेले हो सबके साथ रहो पर
अकेले रहो व्यक्ति ने कहा पर गुरुदेव यह

कैसे हो सकता है गुरु उस व्यक्ति को एक
जगह पर ले गए जहां एक मेला लगा था और वहां
बहुत भीड़ थी गुरु ने कहा देखो अपने आसपास
यहां किसी को जानते हो व्यक्ति ने कहा
नहीं यहां तो कोई भी मेरी जान पहचान वाला
नहीं है फिर गुरु ने कहा क्या तुम यहां
अकेले हो व्यक्ति बोला हां गुरुदेव
बिल्कुल अकेला हूं गुरु ने कहा नहीं
तुम्हारे मन में कुछ चल रहा है तुम अकेले
नहीं हो फिर व्यक्ति ने कहा हां गुरुदेव
मैं जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहता हूं
मैं अपनी पत्नी अपने बच्चों और अपने
माता-पिता से मिलना चाहता हूं अपने
मित्रों से मिलना चाहता हूं वही चीजें
मेरे मन में चल रहा है गुरु ने कहा अब यह
सब भूलकर आंखें बंद कर लो और अपना ध्यान
यहां होने वाली आवाजों पर लगा दो व्यक्ति
ने ऐसा ही किया और जैसे ही उसने अपनी
आंखें बंद की और सारा ध्यान वहां हो रही
आवाजों पर लगा दिया उसे एक अकेलापन एकांत
महसूस हुआ उसे लगा कि वह इतनी बड़ी भीर
में भी अकेला है सभी आवाजों के ऊपर ध्यान
लगाने के कारण किसी आवाज का कोई महत्व
नहीं था बस आवाज ही थी उसने अपनी आंखें
खोली और कहा गुरुदेव यहां तो मैं बिल्कुल
अकेला हूं यहां पर कुछ नहीं है गुरु ने
कहा बस इसी तरह अकेला रहना है तुम्हें रहो
सबके साथ पर भीतर से अकेले रहो साथ में सब
हो पर मन में कोई ना हो जिसने इस तरह से
अकेला रहना सीख लिया उसे कभी जीवन में दुख
नहीं होते उसे चीजें दुख नहीं देती वह हर
चीज में आनंद की प्राप्ति करता है फिर संत
आगे कहते हैं सफलताएं अकेलेपन से ही शुरू
होती हैं अकेलापन से ही हमें उनसे मिला
देती है तो अपने अकेलेपन को नकारात्मक
नहीं समझना चाहिए बल्कि उसे अकेलापन समझकर
खुद को जानने का प्रयास करना चाहिए जब
तुम्हें एकांत पसंद आने लगे तब इसका मतलब
यह होगा कि तुम्हारा वास्तविक वजूद तुमसे
मिलना चाहता है इसीलिए अपने इस एकांत
प्रेम का सम्मान करो फिर गुरु बोले मैं
तुम्हें सात ऐसी चीजों के बारे में बताता
हूं जो अकेले रहने वाले लोगों में पाई
जाती हैं उन्हें दूसरों से अलग और उन्हें
बेहतर बनाती है फिर संत ने कहना शुरू किया
पहली खूबी जो एकांत में रहने वाले लोगों
में पाई जाती है वह यह है कि ऐसे लोग
दूसरों की तुलना में खुद के प्रति ज्यादा
जागरूक होते हैं वह खुद के स्वभाव और आचरण
के बारे में ज्यादा गहराई से जानते हैं
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब हम अकेले
होते हैं तो हमें खुद के बारे में सोचने
का काफी समय मिल जाता है जिससे हम खुद के
व्यवहार को अच्छे से समझ पाते हैं एकांत
में रहने वाले लोग उनकी कमजोरी और ताकत को
भी अच्छे से जान पाते हैं जिससे वह दूसरे
लोगों की तुलना में किसी भी खराब
परिस्थिति का सामना ज्यादा अच्छे से कर
सकते हैं फिर गुरु ने कहा अकेले रहने वाले
लोगों की दूसरी खूबी है कि वह सकारात्मक
सोच वाले लोग होते हैं देखो जब बहुत से
लोग हमारे साथ होते हैं तो वहां एक दूसरे
से तुलना करना घमंड लालच जैसे कु विचार
अपने आप ही मन में आने लगते हैं और फिर
इंसान इन विचारों के बस में आकर उल्टे
सीधे काम करने लगता है हालांकि ऐसा नहीं
है कि एकांत में रहने वाले लोगों के मन
में यह विचार नहीं आते लेकिन क्योंकि वह
अकेले हैं इसलिए दूसरों से तुलना जलन घमंड
जैसे विचार उनके मन में दूसरों की तुलना
में थोड़ा कम आते हैं साथ ही अकेले रहने
की वजह से उन्हें खुद के बारे में सोचने
का ज्यादा समय मिल जाता है जिससे वह अपने
नकारात्मक विचारों को पहचान कर उन्हें कम
कर सकते हैं जिसके कारण एकांत में रहने
वाले लोग ज्यादा सकारात्मक होते हैं फिर
गुरु कहते हैं अकेले रहने वाले लोगों की
तीसरी खूबी है कि यह लोग ज्यादा अनुशासित
और आत्मनिर्भर होते हैं क्योंकि अकेले
रहने वाले लोगों को ज्यादातर काम खुद से
ही करने पड़ते हैं इसलिए यह दूसरों की
तुलना में ज्यादा आत्मनिर्भर होते हैं साथ
ही ऐसे लोगों को दूसरों का काम भी पसंद
नहीं आता है यह अपना काम खुद करने पर ही
भरोसा करते हैं साथ ही यह लोग कोशिश भी
करते हैं कि दूसरों से कम से कम सहायता
लेनी पड़े क्योंकि ऐसे लोग आत्मनिर्भर और
अपने काम को लेकर स्पष्ट होते हैं इसलिए
ऐसे लोग अनुशासित भी होते हैं यह अपने समय
की कदर करते हैं और दूसरों का भी समय
बर्बाद नहीं करते अकेले होने की वजह से
ऐसे लोग एक निश्चित दिनचर्या का पालन भी
करते हैं जिससे यह लोग ज्यादा व्यवस्थित
होते हैं और यह भी इनके अनुशासित होने का
एक कारण है फिर गुरु ने आगे कहा अकेले
रहने वाले लोगों की चौथी खूबी है कि यह
लोग किसी भी चीज के बारे में बड़ी गहराई
से सोच सकते हैं किसी भी चीज के बारे में
बारीकी और गहराई में जाकर सोचने की ताकत
होती है अकेले रहने वाले लोगों की यह सबसे
बड़ी खासियत होती है इसलिए जितने भी लेखक
कवि और बड़े-बड़े काव्यों के रचयिता हुए
हैं उन सभी को एकांत में रहना पसंद था
क्योंकि जब कोई व्यक्ति एकांत में होता है
तो वह अपने अंदर की आवाज सुन पाता है
जितने भी बरे आविष्कार हुए हैं उन सब की
शुरुआत एकांत में हुई थी क्योंकि एकांत
में रहकर ही किसी भी चीज के बारे में बड़ी
बारीकी से सोचा और समझा जा सकता है
फिर गुरु ने कहा एकांत में रहने वाले
लोगों की पांचवीं खूबी यह है कि इनका
व्यक्तित्व सबसे अलग और सबसे हटकर होता है
वे लोग जो ज्यादातर दूसरे लोगों के साथ
नहीं रहते हैं और अकेले रह जाते हैं वैसे
व्यक्ति जाने अनजाने में ही सही लेकिन
दूसरों के व्यक्तित्व का कुछ हिस्सा अपने
अंदर ले ही लेता है दूसरों की अच्छी आदतें
दूसरों के अच्छे विचार अपने अंदर ले ही
लेता है जिससे उनके व्यक्तित्व में और भी
निखर आ जाता है उनका व्यक्तित्व कई सारे
लोग के व्यक्तित्व का मिश्रण हो जाता है
क्योंकि एकांत में रहने वाले लोग अपना
ज्यादातर समय अपने साथ बिताते हैं इसीलिए
यह दूसरों की बुरी बातों और बुरी विचारों
से बहुत ही कम प्रभावित होते हैं इनके
अपने जीवन को जीने के खुद के बनाए नियम और
कायदे होते हैं जिनका यह पालन करते हैं यह
किसी से भी आसानी से प्रभावित नहीं होते
इसलिए ऐसे लोगों की शख्सियत सबसे हटकर
सबसे अलग होती है इसलिए इनके व्यवहार में
एक अलग ही निराला पन होता है गुरु बोले
छठी खूबी यह है कि जो एकांत में रहने वाले
लोगों में पाई जाती है अकेले रहने वाले
लोगों दूसरों के साथ रिश्ते बहुत ही गहरे
और मजबूत होते हैं हालांकि अकेले रहने
वाले लोग ज्यादा लोगों से अपने संबंध नहीं
बनाते लेकिन यह जितने भी लोगों से संबंध
बनाते हैं सच्चे दिल से बनाते हैं ऐसे
लोगों के बहुत ही कम दोस्त होते हैं लेकिन
जितने भी होते हैं यह उनसे अपनी दोस्ती
पूरी ईमानदारी से निभाने की कोशिश करते
हैं अक्सर लोगों को यह लगता है कि एकांत
में रहने वाले लोग बहुत कम बात करते हैं
लेकिन उनसे पूछिए जिनसे यह दिल से झुरे
होते हैं कि उनसे कितनी बातें करते हैं
ऐसे लोग इन्हें अपना मान लेते हैं और वह
इनके सामने अपने पूरे दिल की बात रख देते
हैं अकेले रहने वाले लोग बहुत ही कम लोगों
के साथ संबंध रखते हैं लेकिन जरूरत पड़ने
पर वह अपनी तरफ से पूरी मदद करने के लिए
भी तैयार रहते हैं इसलिए इनके रिश्ते कम
लोगों से तो होते हैं लेकिन जिनके भी साथ
होते हैं बहुत मजबूत होते हैं अगली खूबी
यह है कि अकेले रहने वाले लोग मानसिक तौर
पर और भावनात्मक रूप से बहुत मजबूत होते
हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि अगर आज
कोई समस्या उनके ऊपर आती है तो उन्हें
अकेले ही उस समस्या से निपटना पड़ेगा ऐसा
बार-बार करने से उनके अंदर खुद के प्रति
आत्मविश्वास बढ़ जाता है और आत्मविश्वास व
आत्मसम्मान बढ़ने से वे मानसिक और
भावनात्मक तौर पर और मजबूत होते चले जाते
हैं और वह यह मान लेते हैं कि ऐसी कोई भी
समस्या नहीं है जिसे वह अपनी दृढ़ इच्छा
शक्ति के दम पर हरा ना सके और यही एक सोच
उन्हें दूसरों से अलग बनाती है इतना कहने
के बाद गुरु चुप हो जाते हैं फिर वह
व्यक्ति कहता है गुरुदेव आपकी सारी बात
समझ में आ गई लेकिन यह कब कहा जा सकता है
कि अकेलापन एक वरदान है यह सुनकर गुरु जी
कहते हैं अकेलापन हमेशा से ही एक वरदान
रहा है अगर हम उस समस्या को पूरी
सकारात्मकता के साथ उपयोग कर पाएं तो हम
दुनिया के लोगों के साथ होते हैं तब हम
भीर का हिस्सा होते हैं लेकिन जब हम अकेले
होते हैं तब हम खुद के साथ होते हैं और जब
हम खुद के साथ होते हैं हैं तभी हम अपने
समय का सदुपयोग कर सकते हैं खुद का आकलन
खुद के सोच और सभी बातों पर अच्छे से
ध्यान दे सकते हैं अपनी कमजोरियों पर भी
काबू पा सकते हैं या ऐसा कह सकते हैं कि
सच में अच्छाई की राह पर चल सकते हैं उस
व्यक्ति को गुरु की बात समझ आई और वह गुरु
का धन्यवाद कर अपने घर चला गया फिर भगवान
शिव कहते इंसान इतना समझे कि जिन चीजों को
पाना चाहता है वह तब तक दुख देता है जब तक
कि इंसान उसे पा ना ले और जब इंसान उसे पा
लेते हैं तब वह फिर से दुख होने लगता है
कि वह कहीं हमसे छूट ना जाए और जब वह
चीजें इंसान से छूट जाती है तब वह फिर से
ज्यादा दुख हो जाता है उस चीज के जाने का
दुख बहुत गहरा होता है जीवन भर इंसान एक
चीज को पकड़ता है फिर दूसरी चीज को पकड़ता
है और फिर तीसरी चीज को पकड़ता है और पीछे
की चीजों को विदा करते रहता है इसी तरह
इंसान सुख पकड़ते पकड़ते दुख को पकड़ लेता
है और जिस व्यक्ति ने अकेला रहना सीख लिया
वह परिवार में समाज में सब कुछ करते हुए
आनंद की प्राप्ति कर सकता है और अपने सारे
कार्यों को पूरा करते हुए सुखमय जीवन जी
सकता है इतना कहकर भगवान शिव इस कहानी को
समाप्त करते हैं इस वीडियो को बोलते समय
कोई त्रुटि हो तो मैं क्षमा चाहती हूं
उम्मीद है आप सभी को यह वीडियो अच्छी लगी
होगी अगर आप शिव के सच्चे भक्त हैं तो
चैनल को सब्सक्राइब और वीडियो को लाइक
करके कमेंट में हर हर महादेव लिख दीजिए

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